पागलपन
माधवी कुटटी
अंग्रेजी की प्रख्यारत लेखिका कमला दास ( 31 मार्च, 1934- 31 मई,
2009) मलयालम में माधवी कुटटी के नाम से लिखती थीं। उन्हेंल आत्म कथा ‘माई
स्टोरी’ से काफी शोहरत मिली। केरल के त्रिचूर जिले में जन्मीं कमला दास की
अंग्रेजी में ‘द सिरेंस’, ‘समर इन कलकत्ता’, ‘दि डिसेंडेंट्स’, ‘दि ओल्डी
हाउस एंड अदर पोएम्स ’, ‘अल्फाेबेट्स ऑफ लस्ट’’, ‘दि अन्ना‘मलाई पोएम्सल’
और ‘पद्मावती द हारलॉट एंड अदर स्टोरीज’ आदि बारह पुस्तजकें प्रकाशित हो
चुकी हैं। मलयालम में ‘पक्षीयिदू मानम’, ‘नरिचीरुकल पारक्कुम्बोल’,
‘पलायन’, ‘नेपायसम’, ‘चंदना मरंगलम’ और ‘थानुप्पू’ समेत पंद्रह पुस्ताकें
प्रकाशित हो चुकी हैं। वर्ष 1984 में कमला दास नोबेल पुरस्कामर के लिए
नामांकित हुईं। इसके अलावा उन्हेंि एशियन पोएट्री पुरस्कारर(1998), केन्ट
पुरस्काार (1999), एशियन वर्ल्डस पुरस्कारर (2000), साहित्यत अकादेमी
(2003), वयलॉर पुरस्काोर (2001), केरल साहित्य9 अकादेमी पुरस्कालर (2005)
आदि से सम्मादनित किया गया।
उनकी इस कहानी का अनुवाद युवा कवि और अनुवादक संतोष अलेक्से ने किया है-
कई लोगों से सुनने के बाद ही मैं यकीन कर सकी कि अरुणा
पागल हो गयी है। दिल्ली से आने के दूसरे ही दिन मैं उसके घर गयी। अरुणा की
सुन्दर नेपाली नौकरानी ने दरवाजा खोला। वह हँसी और उसके दाँतों में पान
चबाने के कारण लगे दाग दिखाई दिये।
‘‘तुम्हारी मालकिन कहाँ है ?’’ मैंने पूछा।
‘‘मालकिन बीमार है।’’ उसने कहा, ‘‘पाँच महीने हो गये।’’ उसके बताये हुये
कमरे में मैंने देखा कि अरुणा ने लाल साड़ी पहनी हुई थी और चारपाई पर
बैठकर छत की ओर देख रही थी।
‘‘अरुणा तुझे क्या हुआ।’’ मैंने पूछा, ‘‘तू इतनी दुबली कैसे हो गयी है।’’
वह आकर मरे गले लग गयी। उसके बालों में पसीने की गंध थी। अरुणा मेरे गले में हाथ डालकर मुझे देखती रही।
‘‘तू इतने दिनों से मुझे मिलने क्यों नही आई ?’’ उसने पूछा, ‘‘क्या तू मुझे नापसंद करने लगी?’’
‘‘बता, तुझे कौन नापसंद करने लगा ? ’’
‘‘वो… मेरे पति।’’
‘‘मुझे विश्वास नहीं होता। तुझे गलतफहमी हो गयी है। तुझसे नफरत करने का कोई कारण ही नहीं है।’’
अरुणा बिस्तर पर लेट गई। ‘‘वह सब तू विश्वास नहीं करेगी विमला।’’ उसने
कहा, ‘‘आजकल मेरी बातों का कोई विश्वास नहीं करता। वे कहते हैं कि मैं
पागल हूँ। मैं बच्चों को सताती हूँ। चाकू से मैं लोगों को डराती हूँ। तूने
यह सुना होगा।’’
‘‘ये सब बातें कौन फैलाता है।’’ मैंने पूछा।
‘‘मेरे पति और… बाकी सब। अब बच्ची भी मेरे पास नहीं आती। मेरी सास उसको
ले गयी। पिछले महीने जब मैंने रोकर, हल्ला मचाया तब वे बच्ची को लेकर आये।
लेकिन बच्ची ने दरवाजे पर खड़े होकर कहा, ‘माँ, तू पागल है’।’’
‘‘यह सब कब शुरू हुआ ?’’ मैंने पूछा।
‘‘मुझे याद नहीं है।’’ अरुणा ने कहा, ‘‘मुझे समय का कोई ज्ञान नहीं है।
वे कहते हैं कि मैंने पति की हत्या करने की कोशिश की, चाकू लेकर उनका पीछा
किया। विमला! तू ही बता, क्या मैं यह सब कर सकती हूँ?’’
मैंने केवल सिर हिलाया।
‘‘पड़ोसी मुझसे डरते हैं। उन्होंने मेरी नौकरानी से पूछा कि मेरा पति मुझे पागलाखाने क्यों नहीं ले जाते ?’’
‘‘किसने कहा?’’ मैंने पूछा।
‘‘वही फूलमती। तू उसे जानती नहीं है न। अब वह इस घर की रानी है। अब मेरे पति के साथ बिस्तर भी बाँटने लगी है।’’
‘‘नहीं, अरुणा, यह सब गलत है। तुझे गलतफहमी हो गयी होगी।’’ मैंने कहा।
‘‘मेरी बातों पर कोई विश्वास नहीं करता।’’ वह बुदबुदायी।
‘‘तू यहाँ से चली क्यों नहीं जाती?” मैंने पूछा, ‘‘अगर बात सही है तो
अपमानित होकर यहाँ क्यों रहती है ? तू अपने पिताजी के पास जा सकती है न
?’’
‘‘यह नहीं हो सकता।’’ अरुणा ने कहा, ‘‘बीच-बीच में रात को बत्ती जलाकर
देखती हूँ तो पति को सोया पाती हूँ। दोनों हाथों के नीचे सिर रखकर बच्चों
के समान सोते हैं। विमला, मेरे पति कितने सुन्दर लगते हैं सोते हुये।
उन्हें देखकर सारे दु:ख भूल जाती हूँ। नहीं, मैं उनको छोड़कर कभी नहीं
जाऊँगी। विमला तू समझ रही है न !’’